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Month: December 2020

वक्रासन

अर्थ-

इस आसन मेंशरीर की स्थिति वक्र (मरोडी हुई) होने के कारण इसे वक्रासन कहते है। यह अर्धमत्स्येन्द्रासन का ही एक सरल रूप होने पर भी उसके समान ही लाभदायक है।

विधि-

दण्डासन मंे बैठे। बायां पैर मोडकर बांये पैर के पंजे का मध्य भाग दायें घुटने के पास रखें। बांये घुटने का रूख आसमान की ओर रहेगा। दायें हाथ को बांई जांघ के उपर से बांये पैर के पार ले जाकर बांये पैर के पंजे को या टखने को पकड लें। शरीर को कमर से बांई ओर मरोडते हुये बांये हाथ को पीछे की तरफ जमीन पर रख दें। अब शरीर को ज्यादा से ज्यादा मरोड दें। गर्दन को भी बांई और मरोड कर ज्यादा से ज्यादा पीछे की ओर देखें। यथासंभव शरीर को (जमीन की तरफ नहीं झुकाकर) सीधा रखने का प्रयास करें। इस स्थिति में 1/2 से 1 मिनट तक रूकें। विपरीत क्रम में वापस आकर पैर बदल कर दुसरी ओर करें। समान समय तक करने के बाद विपरीत क्रम में वापस आकर दण्डासन में विश्राम करें।

लाभ-

इस आसन से मेरूदण्ड के जोड़ों को एवं उनकी पेशियों को मजबुती मिलती है। इससे पाचन एवं मल विसर्जन कार्य सुधरता है। पेट की चर्बी कम करने में सहायक है। यह बद्धकोष्ठता (कब्ज), आफरा, यकृत की दुर्बलता तथा स्नायु दुर्बलता को दूर करता है। यह मेरूदण्ड की कठोरता को कम करता है एवं कमर दर्द को दूर करता है। गुर्दे एवं पेट के अन्य रोगों में भी उपयोगी है। यह मधुमेह को नियंन्त्रित करने में अत्यन्त लाभकारी है।

सीमाये-

  1.  सरवाईकल वाले व्यक्ति गर्दन न मोडं।
  2. आसन की अन्तिम अवस्था में कमर, पीठ, गर्दन सीधी रखने की कोशिश करें एवं शारीरिक सामथ्र्य के अनुसार करें।
  3. किसी कारणवश अगर अपने हाथ से टखने एवं पंजा पकड में नहीं आये तो कोई बात नहीं, आप अपने पेट एवं नाभि को ज्यादा से ज्यादा मरोडने का प्रयास करें। आप चाहे तो मसन्द या ऩाटे का सहारा लेकर भी कर सकते है।

बद्ध कोणासन

अर्थ-

इस आसन में शरीर की आकृति एक बंधे हुये कोण की होती है, अतः इसे बद्धकोणासन कहते है।

विधि-

दोनों पैर (मिले हुये) सामने फैलाकर सीधे होकर दण्डासन में बैठ जायें। श्वास छोडते हुये दोनों घुटने मोडकर दोनों पैरों की एड़ी, पंजे व तलुवे आपस में मिला दें। दोनो घुटनों व जांधों को पूरी तरह ढीला छोडते हुए जमीन की तरफ जाने दें एवं मिले हुये एडी, पंजो को ज्यादा से ज्यादा जननांगों के पास ले आयें। दोनों हाथों की सहायता से पैरों के मिले हुये पंजों को बांधकर पकड लें ताकि वो मिले रहें। कमर, पीठ, गर्दन को सीधा रखते हुये श्वास को सामान्य रखें। आंखें बन्द व मन को शान्त रखें, शुरूआत में 10 मिनिट तक का अभ्यास करें। विपरीत क्रम में वापस आयें।

लाभ-

  • यह बस्तिप्रदेश के अंगों को निर्दोष बनाकर उन्हें सुदृढ करता है।
  • बस्ति प्रदेश, उदर, एवं पीठ में रक्त संचार बढाता है।
  • घुटनों, कुल्हों व साईटिका के दर्द एवं हर्निया में लाभकारी
  • गुर्दा, शिश्न की ग्रंथियां एवं मुत्राशय को स्वस्थ बनाता है।
  • मुत्र रोगों को ठीक करता है।
  • अनियमित मासिक धर्म को ठीक करता है।
  • गर्भावस्था के दौरान यह अभ्यास करने से प्रसूति आसान व पीडारहित होने के साथ गर्भस्थ शिशु के लिये भी अत्यन्त लाभकारी है।

सावधानिया-

घुटनों व जांधों को ढीला छोडकर सहजता से जमीन से लगाये, कोई अतिरिक्त दवाब नहीं डालें। आवश्यकता होने पर कुल्हों के नीचे (आसन के रूप में) मोडा हुआ कम्बल/ईंट/मसन्द (4-5 इंच मोटा) लगा सकते है। इस आसन का अभ्यास भोजन के बाद भी किया जा सकता है।