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भस्त्रिका

लुहार की धौंकनी की तरह वेग पुर्वक वायु भरने व निकालने की समानता के कारण यह नामकरण है। पùासन, अर्धपùासन या सुखासन (पालथी) में बैठ जायें। कमर, पीठ, गर्दन सीधी रखें मगर इनमें कोई अकड़ ना हो। दोनों हाथ घुटनों पर सामान्य स्थिति में रखें। आँखें कोमलता से बन्द कर लें और अन्तर्मुखी हो जायें। वेगपूर्वक ष्वास लेते हुये दोनों हाथों को धीरे-धीरे सिर से ऊपर उठायें। पूरी तरह (अधिकतम) ष्वास भरने के बाद हाथों को नीचे लाते हुये वेगपुर्वक ष्वास बाहर निकाल दें। पूरा ष्वास निकालने के बाद दोहरायें और लगातार 15 से 20 चक्र करें। अन्तिम चक्र में ज्यादा से ज्यादा ष्वास निकालकर 1 मि. तक विश्राम व आत्मनिरीक्षण करें। यह (विश्राम) अत्यन्त महत्वपूर्ण व आवष्यक हैं।

विषेष: दोनों हाथों को ऊपर-नीचे करने के क्रम में षरीर में अनावष्यक अकड़, झटका या हलचल नहीं हो। चेहरा सामान्य व तनाव-मुक्त रहे। ष्वास भरने व निकालने का समय बराबर रहना चाहिये। ष्वास ज्यादा से ज्यादा भरें व पूरी तरह निकालें। अपना पुरा ध्यान ष्वासों पर केन्द्रित रखें।

सावधानी:जिन व्यक्तियों को उच्च रक्तचाप, हृदय-रोग, हर्निया, गैस्ट्रिक अल्सर, मिर्गी रोग या चक्कर आने की समस्या है वे यह अभ्यास नहीं करें।

किसी-किसी नये साधक को षुरुआती दिनों में सिर में भारीपन या चक्कर का एहसास हो तो कुछ समय विश्राम करें, और कुछ दिनों तक ष्वास भरने व निकालने की गति धीमी या सामान्य रखकर अभ्यास करने के बाद धीरे-धीरे ष्वास की गति बढायें। अभ्यास नियमित व दृढ होने के साथ ही क्रमषः चक्रों की संख्या बढाते हुये अभ्यास को तीन मिनट तक बढायें।

लाभ:षरीर से विषाक्त तत्वों को दूर करता है व वात, पित्त व कफ तीनों से सम्बन्धित रोगों को दूर करता हैं। षरीर का चयापचय;डमजंइवसपेउद्ध बढाता हैं व रक्त में आॅक्सीजन की मात्रा बढाता हैं। पाचन संस्थान व फुफ्फसों को पुष्ट करता है, दमा, फेफड़े के रोग, गले के रोग व कफ की समस्या में अत्यन्त लाभकारी है। ध्यान की तैयारी में हायक है।