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जठर परिवर्तनासन

अर्थ-

जठर का अर्थ है पेट या उदर, परिवर्तन का अर्थ है मरोड़ना। इस आसन में हम पेट को मरोड़ते हैं अतः इसे जठर परिवर्तनासन कहते है।

विधि-

पीठ के बल जमीन पर लेट जायें। दोनों हाथों को पाश्र्वो में कन्धों की ऊंचाई पर, हथेलियों का रूख आसमान की तरफ रखते हुये, फैला दें। दोनों पैरों के घुटने सीधे रखते हुये 90 डिग्री तक ऊपर उठायें ताकि आपका धड़ और टांगे एक समकोण बना लें। पैरों के पंजों को अपनी ओर खींच कर रखें। इस स्थिति में 10 सैकिण्ड रूकने का प्रयास करें। अब अपनी टांगों को धीरे-धीरे दाहिनी ओर ले जायें और जमीन पर रख दें। धड़ को यथास्थान स्थिर रखते हुये अपने पैरों को (घुटने सीधे रखते हुये) दाहिने कन्धे की तरफ ले जाने का प्रयास करें। सिर को
धुमाकर दृष्टि बायें हाथ की तरफ करें। इस स्थिति में एक मिनट तक रूकें। पैरों को धीरे-धीरे उपर उठायंे और यही क्रिया बाईं ओर करें। बाईं ओर एक मिनट रूकने के बाद टांगे उपर समकोण की प्रारम्भिक स्थिति में लाते हुये विपरीत क्रम में वापस आ जायें और विश्राम करें।

लाभ-

इसके नियमित अभ्यास से उदर (पेट) के समस्त अंग सक्रिय हो जाते हैं। पेट व कमर के मोटापे को कम करता है। इस आसन से किडनी की बहुत अच्छी मालिस होती है, अतः किडनी की समस्यायें दूर होती है। गैस, एसीडिटी एवं मधुमेह जैसे रोगों में लाभकारी है। इसके अभ्यास से रीढ़ का लचीलापन बढकर कमर दर्द व गर्दन दर्द में भी लाभ होता है।

सावधानी-

जिनके कमर में दर्द रहता है या जो लोग पैरों को उपर 90 डिग्र्री तक ले जाने में असमर्थ है वे लोग घुटनों को मोडकर छाती पर रख दें। घुटनों को मोडी हुई स्थिति में ही क्रमशः दांयी व बांयी तरफ ले जाकर टांगंे सीधी करके अभ्यास करें। सिर व दृष्टि टांगों के विपरीत दिशा में रखें अर्थात् टांगंे दांई तरफ हो तो दृष्टि बांये हाथ की तरफ। हर स्थिति में दोनों कन्धे जमीन से लगाकर रखने का प्रयास करें। जबरदस्ती नहीं करके अपनी सामथ्र्य के अनुसार करें। नियमित अभ्यास से लचीलापन बढ़ाकर हर कोई समयानुसार पुर्णत्व पा सकता है।