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Month: September 2020

जठर परिवर्तनासन

अर्थ-

जठर का अर्थ है पेट या उदर, परिवर्तन का अर्थ है मरोड़ना। इस आसन में हम पेट को मरोड़ते हैं अतः इसे जठर परिवर्तनासन कहते है।

विधि-

पीठ के बल जमीन पर लेट जायें। दोनों हाथों को पाश्र्वो में कन्धों की ऊंचाई पर, हथेलियों का रूख आसमान की तरफ रखते हुये, फैला दें। दोनों पैरों के घुटने सीधे रखते हुये 90 डिग्री तक ऊपर उठायें ताकि आपका धड़ और टांगे एक समकोण बना लें। पैरों के पंजों को अपनी ओर खींच कर रखें। इस स्थिति में 10 सैकिण्ड रूकने का प्रयास करें। अब अपनी टांगों को धीरे-धीरे दाहिनी ओर ले जायें और जमीन पर रख दें। धड़ को यथास्थान स्थिर रखते हुये अपने पैरों को (घुटने सीधे रखते हुये) दाहिने कन्धे की तरफ ले जाने का प्रयास करें। सिर को
धुमाकर दृष्टि बायें हाथ की तरफ करें। इस स्थिति में एक मिनट तक रूकें। पैरों को धीरे-धीरे उपर उठायंे और यही क्रिया बाईं ओर करें। बाईं ओर एक मिनट रूकने के बाद टांगे उपर समकोण की प्रारम्भिक स्थिति में लाते हुये विपरीत क्रम में वापस आ जायें और विश्राम करें।

लाभ-

इसके नियमित अभ्यास से उदर (पेट) के समस्त अंग सक्रिय हो जाते हैं। पेट व कमर के मोटापे को कम करता है। इस आसन से किडनी की बहुत अच्छी मालिस होती है, अतः किडनी की समस्यायें दूर होती है। गैस, एसीडिटी एवं मधुमेह जैसे रोगों में लाभकारी है। इसके अभ्यास से रीढ़ का लचीलापन बढकर कमर दर्द व गर्दन दर्द में भी लाभ होता है।

सावधानी-

जिनके कमर में दर्द रहता है या जो लोग पैरों को उपर 90 डिग्र्री तक ले जाने में असमर्थ है वे लोग घुटनों को मोडकर छाती पर रख दें। घुटनों को मोडी हुई स्थिति में ही क्रमशः दांयी व बांयी तरफ ले जाकर टांगंे सीधी करके अभ्यास करें। सिर व दृष्टि टांगों के विपरीत दिशा में रखें अर्थात् टांगंे दांई तरफ हो तो दृष्टि बांये हाथ की तरफ। हर स्थिति में दोनों कन्धे जमीन से लगाकर रखने का प्रयास करें। जबरदस्ती नहीं करके अपनी सामथ्र्य के अनुसार करें। नियमित अभ्यास से लचीलापन बढ़ाकर हर कोई समयानुसार पुर्णत्व पा सकता है।

नौकासन

अर्थ-

इस आसन में षरीर की आकृति नाव (नौका) की तरह होने से ही इसका नाम नौकासन या नावासन रखा गया है।

विधि-

दोनों पैर सामने फैलाकर सीधे बैठ जायें। अपने धड़ को पीछे की ओर झुकाते हुये दोनों कोहनियों के बल अधलेटी स्थिति में आ जायें। सीने को फैलाते हुये ऊंचा उठा दें। कंधा और कोहनी एक सीध में ही रखें। अब दोनों पैरों की एडी व पंजों को मिलाकर रखते हुये दोनों पैरों को धीरे-धीरे सिर के बराबर ऊपर उठा दें। पैरों के पंजों को अपनी ओर खींचकर रखने का प्रयास करें। इस स्थिति में 1 मि. तक रूकें। धीरे धीरे विपरीत क्रम में वापस आजायें। षवासन में लेटकर विश्राम करें।

विशेष-

आसन की स्थिति में आने के पष्चात् सीना चैंडा और सामान्य रखें। गर्दन की स्थिति सामान्य रखें। अवांछित तनाव न आनें दें। जो लोग दोनांे पैरांे को उठाने में परेषानी महसूस करते हों वे एक-एक पैर से भी कर सकते हंै। मगर पैर बदल कर दोनों पैरो से बराबर समय तक अभ्यास करें ।

लाभ-

पेट व कमर की चर्बी को कम व मांसपेषियों को सु़़दृढ करता है। पेट के वायु विकार व गुर्दों की समस्या को ठीक करता है। मधुमेह रागियों के लिये लाभकारी है। उदर के समस्त प्रकार के विकारों को ठीक करता है। कंधों व गर्दन की मांसपेषियाॅ मजबूत होती हैं।

सावधानी-

जिन लोगों को कन्धे या गर्दन में दर्द रहता है वो पीठ के बल लेटकर उत्तनपाद आसन का अभ्यास करें। जिनको उच्चरक्त चाप, हृदय रोग या अंब्लीकल हर्निया की षिकायत हो वो इस आसन का अभ्यास नहीं करें।

भुजंगासन

अर्थ-

भुजंग एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है सर्प। इस आसन में हमारे शरीर की आकृति फन उठाये सर्प की तरह होती है अतः इसे भुजंगासन कहते है।

विधि-

कम्बल/मैट पर पेट के बल लेट जायें। मस्तक जमीन से लगा रहेगा। पैरों के पंजे, एड़ी, टखने व घुटने मिलाकर सीधे रखें, हथेलियों को छाती के आस पास जमीन पर टिकाकर (यथासंभव कंधों की बगल में) क्रमशः ललाट, नाक, ठुड्डी, गर्दन व छाती को उपर की ओर मरोडते हुये जमीन से उठा दें। यहां तक की कमर तक का शरीर उपर उठ जाये। आवश्यकतानुसार हाथों का सहारा ले सकते है। अब आपके शरीर की स्थिति एक फन उठाये सर्प के समान
हो गई है। इस स्थिति में कुल्हों की मांसपेशियों को संकुचित करें, ताकि कमर से दबाब हट जायें। 1/2 से 1 मिनट तक आसन में रूके रहे फिर विपरीत क्रम में वापस लेटने की स्थिति में आकर विश्राम करें।

विशेष निर्देश-

छाती को उपर उठाने के बाद ज्यादा से ज्यादा फुलाकर रखने का प्रयास करें।

लाभ-

  1. कंधों व गर्दन की तकलीफ दूर होकर मजबूत बनते है।
  2. भोजनोपरान्त होने वाले पेट के आफरे में अत्यन्त लाभकारी है।
  3. मेरूदण्ड का उचित व्यायाम होकर उसके दोष दूर होते है।
  4. पेट के अन्दरूनी अवयवों को दुरूस्त व सक्रिय करता है।
  5. दमा, मन्दाग्नि व वायुदोषों में इसका विशेष प्रभाव है।
  6. कमर दर्द के लिये अत्यन्त लाभकारी है।
  7. पाचन शक्ति व भूख को बढाता है।
  8. थायराॅयड, पैराथायराॅयड, एड्रीनल और जननांगों से सम्बन्धित अन्तःस्त्रावी ग्रंथियों में रक्त का प्रवाह सुचारू बनाकर उन्हें निर्दोष करता है।

सावधानी-

जिन लोगों की कमर में दर्द रहता है वे या तो हथेलियों को जमीन पर नहीं टिकायें (अधर रखें) और शरीर को अपनी ही ताकत से (हाथों के सहारे के बिना) ऊंचा उठायें या हाथों को हथेलियों से कोहनी तक जमीन पर टिकाकर रखें एवं शरीर को ऊंचा उठाने में हाथों की शक्ति का इस्तेमाल नहीं करें।